Durgesh Khobragade (Flora & Plant identification of Mohgaon)

Flora & Plant identification of Mohgaon(2019-20)

Durgesh Khobragade
M. Sc. Botany
V. S. P. High School Mohgaon (Dh.)
Department of Science 


Synopsis 

1.Introduction 



किसी क्षेत्रविशेष या कालविशेष में पाए जाने वाले सभी पेड़-पौधों (वनस्पतियों) को सम्मिलित रूप से वनस्पतिजात(Flora) कहा जाता है। इसी प्रकार किसी क्षेत्रविशेष या कालविशेष में पाए जाने वाले सभी पशुपक्षियों एवं जन्तुओं को सम्मिलित रूप से प्राणिजात (fauna) कहा जाता है।
वनस्पतिजात का वर्गीकरण
पौधों को क्षेत्र, काल, विशेष वातावरण या जलवायु के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। भौगोलिक दृष्टि से प्राकृतिक वनस्पति को पर्वत अथवा समतल क्षेत्रों में अलग किया जा सकता है। फ्लोरा का अर्थ वनस्पति जीवाश्म के रूप में ऐतिहासिक बनस्पति जीवन भी हो सकता है। अन्त में, वनस्पति को विशेष वातावरण के अनुसार विभाजित किया जा सकता है:

  • देशी वनस्पति . एक क्षेत्र की देशीय और स्थानीय वनस्पतियां.
  • कृषि और उद्यान वनस्पति . मानव द्वारा समझ-बूझ कर उगाए गए पौधे.
  • घास वनस्पति . परंपरागत रूप से यह वर्गीकरण उन पौधों पर लागू होते हैं जो अवांछनीय माने जाते हैं और जिनका नियंत्रण या उन्मूलन करने का सुविचारित प्रयास किया जाता है। आजकल बनस्पति जीवन के वर्गीकरण की अपेक्षा पदवी का इस्तेमाल अक्सर कम होता है, इसलिए इस वर्गीकरण में तीन विभिन्न प्रकार के पौधे शामिल हैं: घास प्रजातियां, तेज़ी से फैलने वाली प्रजातियां (जो घास हो भी सकते हैं या नहीं भी) और देशी एवं गैर-घासीय प्रजाति जिनकी कृषि अवांछनीय है। कई देशी पौधे जिन्हें पहले बेकार माना जाता था वो अब बहुत फायदेमंद साबित हुए हैं या जो पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए बहुत आवश्यक हैं।

Plant identification







Plant identification is the process of matching a specimen plant to a known taxon. It uses various methods, most commonly single-access keys or multi-access keys.

HistoryEdit




George Bentham English systematician and botanistPlant identification has evolved over hundreds of years and depends to a large extent on what criteria and whose system is used. Plant identification implies comparisons of certain characteristics and then assigning a particular plant to a known taxonomic group, ultimately arriving at a species or infraspecific name.
In the history of botany many large systems, useful at the time, were widely used for decades until superseded as taxonomic knowledge progressed.
  • Genera Plantarum[1] was devised by George Bentham (1800–1884) and Joseph Dalton Hooker (1817–1911) who were British botanists working for Royal Botanic Gardens, Kew in the latter part of the nineteenth century. They described the system in a three-volume work. A total of 202 groups were described, which they called "orders" - now known as families. The system was renowned for being very practical and the keys were quite accurate.
The study by of plant taxonomy with computer programmes was beginning by the early 1970s,[2] and botanical keys now use numerical computer systems.

TaxonomyEdit



This is the branch of botany which deals with plant identification, nomenclature and classification. The term, first coined by French botanist A. P. de Candolle (1813). Carl Linnaeus used the term 'Systematics' which now includes identification, nomenclature and evolutionary relationships.

HerbariumEdit



Reference collections of plant specimens are collected into herbarium and identified. Most plant parts are dried, pressed, mounted on herbarium sheets and stored; succulents and some other types of plants are normally kept in alcohol solution. The sheets are standard size of 16​12 × 11​12 inches or 41.25 × 28.75 cm. The identified plant ideally includes all parts including roots, flowers and fruits, strobili, etc. One of the largest herbaria in the world is kept at the Royal Botanic Gardens, Kew England and has collected an estimated 7 Million specimens.[3]



तुलसी - (ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और १ से ३ फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ से ढकी होती हैं। पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
तुलसी
Ocimum tenuiflorum2.jpg
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत:पादप
अश्रेणीत:w:Asterids। ऍस्टरिड्स
गण:w:Lamiales। लैमिएल्स
कुल:w:Lamiaceae। लैमिएशी
वंश:w:Ocimum। ओसिमम
जाति:O. tenuiflorum
द्विपद नाम
Ocimum tenuiflorum
L.
पर्यायवाची
ओसिमम सैन्क्टम

तुलसी का पौधा

प्रजातियाँ


तुलसी की सामान्यतः निम्न प्रजातियाँ पाई जाती हैं:
१- ऑसीमम अमेरिकन (काली तुलसी) गम्भीरा या मामरी।
२- ऑसीमम वेसिलिकम (मरुआ तुलसी) मुन्जरिकी या मुरसा।
३- ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम।
४- आसीमम ग्रेटिसिकम (राम तुलसी / वन तुलसी / अरण्यतुलसी)।
५- ऑसीमम किलिमण्डचेरिकम (कर्पूर तुलसी)।
६- ऑसीमम सैक्टम
७- ऑसीमम विरिडी।
इनमें ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं- श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं। तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग में लगाते हैं।[1] भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है।[2] इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।[3]

रासायनिक संरचना


तुलसी में अनेक जैव सक्रिय रसायन पाए गए हैं, जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। अभी भी पूरी तरह से इनका विश्लेषण नहीं हो पाया है। प्रमुख सक्रिय तत्व हैं एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल जिसकी मात्रा संगठन स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। ०.१ से ०.३ प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है। 'वैल्थ ऑफ इण्डिया' के अनुसार इस तेल में लगभग ७१ प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूजीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। श्री तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग ८३ मिलीग्राम प्रतिशत विटामिन सी एवं २.५ मिलीग्राम प्रतिशत कैरीटीन होता है। तुलसी बीजों में हरे पीले रंग का तेल लगभग १७.८ प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं कुछ सीटोस्टेरॉल, अनेकों वसा अम्ल मुख्यतः पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेष्मक प्रचुर मात्रा में होता है। इस म्युसिलेज के प्रमुख घटक हैं-पेन्टोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग ०.२ प्रतिशत होती है।[3]

तुलसी माला

तुलसी का औषधीय महत्व


भारतीय संस्कृति में तुलसी को पूजनीय माना जाता है, धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ तुलसी औषधीय गुणों से भी भरपूर है। आयुर्वेद में तो तुलसी को उसके औषधीय गुणों के कारण विशेष महत्व दिया गया है। तुलसी ऐसी औषधि है जो ज्यादातर बीमारियों में काम आती है। इसका उपयोग सर्दी-जुकाम, खॉसी, दंत रोग और श्वास सम्बंधी रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है।[4] [5]

म्रत्यु के समय तुलसी के पत्तों का महत्त्व


मृत्यु के समय व्यक्ति के गले में कफ जमा हो जाने के कारण श्वसन क्रिया एवम बोलने में रुकावट आ जाती है। तुलसी के पत्तों के रस में कफ फाड़ने का विशेष गुण होता है इसलिए शैया पर लेटे व्यक्ति को यदि तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस पिला दिया जाये तो व्यक्ति के मुख से आवाज निकल सकती है।

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