DNA FINGER PRINTING (PROJECT WORK)

       DNA FINGER PRINTING (PROJECT WORK) 




Synopsis 

  • Introduction of DNA finger Printing 
  • DNA finger printing 
  • Technique
  • In Human 
  • Process Steps 
  • Use 
  • DNA finger printing in India 
  • Some important facts
  • MPCST in Govt. J.S.T.PG.College balaghat (M.P.)
  • Photography
  • Certificate  

  • 1.Introduction of DNA finger Printing 


डी ऑक्सी राइबो न्यूक्लिक एसिड अंगुली का निशान
डी एन ए फिंगरप्रिंटिंग, अथवा डीएनए परीक्षण, या डीएनए टाइपिंग एक फोरेंसिक तकनीक है जो व्यक्तियों का पहचान करने के लिए उनके डीएनए की विशेषताओं उपयोग करता है। इनका विकास और इस्तमाल पहली बार1985 में हुआ था। डीएनए रूपरेखा उदाहरण के लिए, पितृत्व परीक्षण और आपराधिक जांच में, एक व्यक्ति की पहचान करने के लिए या एक व्यक्ति का आव्रजन विवाद स्पष्ट करने में सहायता करने के लिए फोरेंसिक विज्ञान में नियोजित कर रहे हैं।डी एन ए फिंगरप्रिंटिंग व्यापक रूप से पशु आबादी के अध्ययन में इस्तेमाल किया गया है और प्राणी शास्त्र के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया है।हालांकि मानव डी एन ए अनुक्रम का 99.9% हर व्यक्ति में एक ही हैं।
आनुवंशिकी प्रोफेसर अलेक् जेफ्रिस द्वारा विकसित् यह प्रक्रिया,एक व्यक्ति के डी एन ए के एक नमूना जिसे आम तौर पर 'रेफ्रेन्स' 'नमूना कहा जाता है,उससे शुरु होत है। आम तौर पर 'रेफ्रेन्स' नमूना इकट्ठा करने के लिये मुख झाड़ू क उपयोग किया जाता है क्यून्की यह आसान एवं सस्ता है। अगर यह उप्लब्द नहि है तो क्त, लार, वीर्य, या अन्य उपयुक्त तरल पदार्थ या ऊतकों का इस्तमाल कर सकता है।डी एन ए कक्षों से निकाला जाता है और उसके बाद शुद्ध किय जाता है। जेफ्रीस् के मूल दृष्टिकोण,प्रतिबंध टुकड़ा लंबाई बहुरूपता प्रौद्योगिकी पर आधारित था जिस मे  डी एन ए को विशिष्ट बिंदुओं पर काटा जाता है। एंजाइमों के द्वारा उत्पादित अलग-अलग लंबाई के टुकड़े को एक जेल पर रखने के बाद विद्युत प्रवाह के सहायता से सुलझाया जाता है।सुलझाने के बाद डबल-असहाय डी एन ए टुकड़े, फिर एक सोख्ता तकनीक से एकल किस्में की तरह विभजित करके एक नायलॉन पत्रक मे स्थानांतरित किया जाता है।जब रेडियोधर्मिता से अवगत कराया गया था 30 से अधिक काले बैंड के एक पैटर्न फिल्म पर जहां लेबल लगे डी ए नए था वहा दिखायी देत है। इस पैटर्न को डी एन ख जाता है डी एन ए फिंगरप्रिंट कहा जाता है।  अलग-अलग् डी एन ए फिंगर प्रिंट की तुलना करने के लिए अलग अलग नमुनओ को साथ-साथ एक ही वैद्युतकणसंचलन जेल पर अध्ययन किया जाता है।
डी एन ए फिंगरप्रिंट ,आपराधिक जांच में, एक संदिग्ध के रक्त या अन्य शारीरिक सामग्री के डी एन ए फिंगरप्रिंट को क्राइम सीन से मिले सबूत के साथ तुलना करने मे सहायक होता है। यह तकनीक पितृत्व की स्थापना करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। डी एन ए फिंगरप्रिंटिंग आम तौर पर जब ठीक से किया है,  एक विश्वसनीय फोरेंसिक उपकरण के रूप में माना जाता है। डी एन ए फिंगरप्रिंटिंग में इस्तेमाल किया तकनीक,जीवाश्म विज्ञान को दृढ़, पुरातत्व, जीव विज्ञान, और चिकित्सा निदान के विभिन्न क्षेत्रों में भीआवेदन किया गया है। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में यह आण्विक स्तर पर विकासवादी परिवर्तन और संबंध दिखाने के लिए मदद कर सकते हैं, और यह केवल बहुत छोटे नमूने, विलुप्त जानवरों, से संरक्षित ऊतक के छोटे टुकड़े जैसे उपलब्ध होने पर भी उपयोग किया जा करने में सक्षम होने का फायदा है। डी एन ए फिंगरप्रिंटिंग आनुवंशिक रूप से विरासत में मिला रोगों का इलाज करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। डी एन ए एक फिंगरप्रिंटिंग का उपयोग सिस्टिक फाइब्रोसिस, हीमोफीलिया, हनटिंग्टन रोग और कई दूसरों की तरह आनुवंशिक बीमारियों का पता लगा कर सकते हैं।इसकी मदद से  कम उम्र में इस बीमारी का पता लगान कर सकता है ताकी उस बिमारी का इलाज किया जा सकता है और वहाँ एक बड़ा मौका है कि इसे पुरी तरह से पराजित् किया जा सकता है।
2. DNA finger printing
डी एन ए अंगुली छापन
VNTR अलेले लंबाई 6 लोगों में.
डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक का उपयोग आपराधिक मामलों की गुत्थियां सुलझाने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही मातृत्व, पितृत्व या व्यक्तिगत पहचान को निर्धारित करने के लिए इसका प्रयोग होता है।[1] वर्तमान में पहचान ढूंढने के तरीकों में अंगुल छापन (​फिंगरप्रिंटिंग​) सबसे बेहतर मानी जाती है। जीव जंतुओं, मनुष्यों में विशेष संरचनायुक्त वह रसायन जो उसे विशिष्ट पहचान प्रदान करता है, उसे डीएनए (डाई राइबो न्यूक्लिक एसिड) कहते हैं। इस पद्धति में किसी व्यक्ति के जैविक अंशो जैसे- रक्त, बाल, लार, वीर्य या दूसरे कोशिका-स्नोतों के द्वारा उसके डीएनए की पहचान की जाती है। डीएनए फिंगरप्रिंट विशिष्ट डीएनए क्रम का प्रयोग करता है, जिसे माइक्रोसेटेलाइट कहा जाता है। माइक्रोसेटेलाइट डीएनए के छोटे टुकड़े होते हैं। शरीर के कुछ हिस्सों में इनकी संख्या अलग-अलग होती है।
3. Technique
तकनीक
१९८४ में ब्रिटिश लीसेस्टर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक सर एलेक जेफ्रेज ने इस तकनीक का विकास किया था।
शरीर में उपस्थित अरबों-खरबों कोशिकाओं के क्रियाकलाप डीएनए द्वारा निश्चित किये जाते हैं। हालांकि डीएनए कणों का ढांचा हर व्यक्ति में एक समान होता है, लेकिन उन्हें गढ़ने वाले बुनियादी अवयवों का क्रम सभी में समान नहीं होता। एक ही प्रजाति के सदस्यों के बीच पहचान ढूंढने के लिए इस अंतर का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया को जेनेटिक फिंगरप्रिंटिंग और डीएनए प्रोफाइलिंग भी कहा जाता है।[1]१९८४ में ब्रिटिश लीसेस्टर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक सर एलेक जेफ्रेज ने इसका विकास किया था। फोरेंसिक विज्ञानमें डीएनए फिंगरप्रिंट का उपयोग होता है। अब फोरेंसिक जांच के लिए वास्तविक अंगुल छाप की आवस्यकता नहीं पड़ती है। इसकी मदद से अपराधी को मात्र एक बूंद के आधार पर ही पकड़ा जा सकता है। डीएनए के नमूने को लिए गए डीएनए एंजाइम द्वारा सेंगमेंटाइज्ड किया जाता है। इसके बाद इसकी छानबीन करके इसे एक्स-रे फिल्म पर एक्सपोज किया जाता है जहां वह ब्लैक बार बनाते हैं, जिन्हें डीएनए फिंगरप्रिंट कहते हैं।
जीवन सूत्र यानि डी एन ए संसार के सभी जीवधारियों में, मानवों की तरह वंशानुक्रम पर आधारित होता है। यह किसी भी जीव की हर सूक्ष्म इकाई में पाया जाता है। अपने जैविक माता-पिता से प्राप्त इस जीवन सूत्र में छिपी हुई सूक्ष्म विभिन्नताओं के आधार पर प्रत्येक जीव को किसी भी अन्य जीव से अलग पहचाना जा सकता है। जीवन सूत्र के इन अत्यधिक परिवर्ती खंडों को अलग करके, रेडियो सक्रिय बनाये जाने के बाद वैज्ञानिक विधि द्वारा विश्लेषण करने से एक व्यक्ति विशेष का क्रमादेश प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि क्रमादर्श मनुष्य के लिये उसी तरह विशिष्ट होता है, जैसे कि अंगूठे का निशान। अतः इस विधि को प्रचलित रूप से डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग के नाम से जाना जाता है। इसमें थोड़े से ही डी एन ए का प्रयोग करके, डि एन ए के उन विशिष्ट भागों, जो वैविध्यपूर्ण होते हैं, को एक रासायनिक शृंखला अभिक्रिया से वृद्धिगत करकों को विशिष्ट जैली समान माध्यम से अलग करके हर टुकड़े का अध्ययन किया जा सकता है।
4. In Human
मानवों में
मानव की पहचान उसके गुणों तथा नाम से की जाती है। दो व्यक्ति सभी गुणों में समान नहीं होते। जुड़वां भी चाहे कितने भी समान क्यों ना हों, फिर भि उनमें भिन्नता पायीं जातीं हैं। त्वचा का रंग, बालों का रंग, आंखों की पुतलियों का रंग, लंबाई, आवाज़, चलने, उठने बैठने का ढंग, बात करने का तरीका, रहन-सहन आदि ऐसे लक्षण हैं, जिनसे मनुष्यों में अंतर और पहचान की जा सकती है।
मानव की व्यक्तिगत पहचान और अंतर को कानूनी रूप देने की आवश्यकता पड़ी। प्रत्येक मानव के अंगुलियों के निशान भिन्न होते हैं। उनमें उभार भिन्न स्थानों पर होते हैं। इस कारण जो चित्र बनता है, उसे अंगुल छाप या फिंगर प्रिंट कहते हैं। वस्तुतः यह कानूनी रूप से मानव की पहचान का तरीका है, जो बहुत पहले फ्रांसिस-गॉल्टन ने निकाला था और आज भी प्रचलित है। यह प्रकृति की देन है।
जीवन सूत्र यानि डी एन ए संसार के सभी जीवधारियों में, मानवों की तरह वंशानुक्रम पर आधारित होता है। यह किसी भी जीव की हर सूक्ष्म इकाई में पाया जाता है। अपने जैविक माता-पिता से प्राप्त इस जीवन सूत्र में छिपी हुई सूक्ष्म विभिन्नताओं के आधार पर प्रत्येक जीव को किसी भि अन्य जीव से अलग पहचाना जा सकता है।
जीवन सूत्र के इन अत्यधिक परिवर्ती खंडों को अलग करके, रेडियो सक्रिय बनाये जाने के बाद वैज्ञानिक विधि द्वारा विश्लेषण करने से एक व्यक्ति विशेष का क्रमादेश प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि क्रमादर्श मनुष्य के लिये उसी तरह विशिष्ट होता है, जैसे कि अंगूठे का निशान। अतः इस विधि को प्रचलित रूप से डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग के नाम से जाना जाता है। इसमें थोड़े से ही डी एन ए का प्रयोग करके, डि एन ए के उन विशिष्ट भागों, जो वैविध्यपूर्ण होते हैं, को एक रासायनिक शृंखला अभिक्रिया से वृद्धिगत करकीक विशिश्ट जैली समान माध्यम से अलग करके हर टुकड़े का अध्ययन किया जा सकता है।
शरीर के हर अंग की कोशिकाओं में जीवन सूत्र अनिवार्य रूप से एक सा होता है। अतः किसी भी अंग की कोशिकाओं, रक्त की कुछ बूंदें, या कपड़े पर लगा रक्त का धब्बा, मूलरोम, मृत शरीर का कोई छोटा सा ऊतक या अंग, त्वचा, दांत, वीर्य आदि से जीवन सूत्र निकालकर डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग द्वारा आण्विक स्तर पर विश्लेषण करने से किसी भि व्यक्ति की सकारात्मक पहचान की जा सकती है।
सभ्यता और विज्ञान के विकास के साथ विश्व में अपराधों की संख्या दोनोंदिन बढ़ रही है। अपराधों के तरीकों के नये प्रकार विकसित हो गये हैं। इन अपराधों की बाढ़ को रोकने के लिये सर्व[प्रथम फिंगर प्रिंटिंग का ही सहारा लिया जाता है। रक्त परीक्षण से भि अपराधियों को पकड़ने में सहायता मिली है। डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र की अत्यंत विलक्षण नवीन जैविक तकनीक है। इस तकनीक का विकास सर्वप्रथम 1985 में इंग्लैंड के लायसेस्टर विश्वविद्यालय के प्रो॰ एलेक जेफरीज ने किया था।

डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग तकनीक आनुवांशिक विज्ञान की देन है। ग्रेगर जॉन मेंडल द्वारा आनुवांशिकी से अंबंधित्नियमों का प्रतिपादन किया गया, जो सर्वाधिक प्रमाणित और बाद में अनुसंधानों के लिये अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुए। जीवन सूत्र एक बहुत ही स्थिर रासायनिक तत्त्व है, अतः नमूना लिये जाने के बहुत बाद तक भी, इससे व्यक्ति विशेष का क्रमादेश बताया जा सकता है। डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग द्वारा बनाया गया क्रमादर्श जीवन पर्यंत एक सा ही रहता है।

5. Process Steps 
प्रक्रिया चरण
डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग तकनीक के विविध चरणइस प्रकार होते हैं।
  • प्रथम चरण में डी एन ए का पृथक्करण तथा शुद्धिकरण किया जाता है। शुद्ध डी एन ए में अनेक टैंडम पुनरावृत्त होते हैं।
  • द्वितीय चरण में डी एन ए को विशिष्ट जगहों पर काटकर विखंडित किया जाता है। इसके लिए विशेष रेस्ट्रिक्शन एंज़ाइम प्रयोग में लाए जाते हैं। ये रासायनिक कैंचियों की तरह कार्य करते हैं।
  • तृतीय चरण में विखण्डित डी एन ए को जैल पर लगाया जाता है। विद्युत आवेश देने पर ये खण्ड अपने स्थान से विस्थापित होने लगते हैं। अपनी लम्बाई के हिसाब से डी एन ए खाण्ड अलग हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रोफोरेसिस कहते हैं।
  • चतुर्थ चरण में उपर्युक्त अलग किए गए डी एन ए खंडों का डी-नैचुरेशन किया जाता है, यानि दोनों तंतुओं को अलग-अलग किया जाता है।
  • पंचम चरण में संपूरक डी एन ए से बने हुए रेडियो सक्रिय प्रोब की मदद से पुराने विखण्डित डी एन ए में से विशेष खण्डों की पहचान की जाती है। अतः रेडियो सक्रिय प्रोब के कारण विशेष डी एन ए खण्डों को पहचान लिया जाता है।
यहां तीन विभिन्न व्यक्तियों के जैल प्रतिचित्र देखिए, जिनका आपस में कोई रिश्ता नहीं है। ये प्रतिचित्र आपस में एक दूसरे से काफी अलग दिखते हैं और प्रत्येक प्रतिचित्र व्यक्ति विशिष्ट है। एक ही परिवार के तीन सदस्यों के जैल प्रतिचित्र गैलरी में दिखाए हैं। यहां माता और पिता के प्रतिचित्र तो भिन्न हैं, परंतु पुत्र का प्रतिचित्र माता और पिता –दोनों के प्रतिचित्रों से कुछ ना कुछ समानता रखता है। यहां समान जुड़वां बच्चों के प्रतिचित्र को देखेंगे, तो दिखता है; कि ये दोनों पूर्णतया एकसमान हैं। इस प्रकार डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग द्वारा विभिन्न व्यक्तियों की पहचान की जा सकती है, संतान के माता या पिता को पहचाना जा सकता है; लेकिन समान जुड़वों की पहचान करना संभव नहीं है।
  • Third step DNA finger printing.jpg
    तृतीय चरण
  • Fourth step DNA finger printing.jpg
    चतुर्थ चरण
  • Fifth step DNA finger printing.jpg
    पंचम चरण
  • DNA printing of parents and child.jpg
    जनक एवं संतान के प्रिंट
  • DNA printing of twins.jpg
    जुड़वाओं के प्रिंट
  • DNA printing inability to detect twins.jpg
    जुड़वाओं के प्रिंट पहचान में असमर्थता

6. Use
उपयोग

डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग एक नूतन एवं सशक्त तकनीक है, जो निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयोग में लायी जा सकती है:-

  1. अपराधों एवं पारिवारिक मामलों की जाँच,
  2. प्रतिरक्षा प्रलेख,
  3. आयुर्विज्ञान एवं स्वास्थ्य जाँच,
  4. वंशावली विश्लेषण
  5. कृषि एवं बागवानी,
  6. शोध एवं उद्योग।

अपराधों एवं पारिवारिक मामलों की जाँच

डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग के द्वारा रक्त वीर्य, बाल, विक्षत मृत शरीर के अवशेष, दांत या हड्डी के टुकड़े आदि के माध्यम से वैयक्तिक स्तर पर सकारात्मक पहचान की जा सकती है। अतः यह विधि हत्या, बलात्कार, अमानुशःइक कृत्यों तथा जघन्य अपराधों, प्रवस-पत्र प्राप्ति, सम्पत्ति उत्तराधिकार, विवाह विच्छेद एवं दीवानी मुकदमों में माता-पिता की सकारात्मक पहचान इत्यादि मामलों में अत्यंत आवश्यक मानी जाने लगी है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में माता-पिता –दोनों ही के डी एन ए होते हैं, अतः डी एन ए की छाप के आधार पर इस बात की पुष्टि की जा सकती है।

फॉरेंसिक जैव प्रौद्योगिकी अभी एक नया क्षेत्र है, जो जंगलों में होने वाले अपराधों को सुलझाएन के लिये एक हथियार की तरह प्रयोग किया जा सकता है। भारतीय न्याय व्यवस्था ने डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग को ठोस साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर लिया है। मृतक के शरीर के बिखरे हुए टुकड़ों की पहचान करने के लिये भि इस तकनीक का प्रयोग किया गया है। पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गाँधी एवं पंजाब के पूर्व मुख्य मंत्री बेअंत सिंह के लिये इसी तकनीक का उपयोग हुआ था। इनके अतिरिक्त अनेकों अपराधों के मामले इस तकनीक द्वारा सुलझाए गए हैं।

प्रतिरक्षा प्रलेख में

प्रतिरक्षा कर्मियों के जीवन सूत्र पैच्छेदिका में संकलित व्यक्ति विशेष क्रमादेशों की दुर्घटनाओं –जैसे युद्ध काल, या जहाज नष्ट होने के समय मृत रक्षाकर्मियों के शरीर के अवशेषों से डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग द्वारा प्राप्त क्रमादेशों की तुलना रक्षाकर्मियों की पहचान के लिये एक बहुत ही अर्थपूर्ण विधि सिद्ध हो सकती है।

आयुर्विज्ञान एवं स्वास्थ्य जाँच
गर्भ-धारण से पूर्व या गर्भ के दौरान ही, इस विधि द्वारा आनिवांशिक रोगों एवं अंतर्जात त्रुटियों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है और इन विकारों की आवृत्ति को एक सीमा तक नियंत्रित करके समस्त मानव जाति की इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
वंशावली विश्लेषण
डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग द्वारा किये गए वंशावली विश्लेषण के आधार पर पशुओं में वांछित गुणों का चयन किया जा सकता है। इस विधि को पशुओं की विशेष जाति के सुधार के लिए प्रयुक्त करके इस क्षेत्र में वांछित सफलता प्राप्त की जा सकती है।
कृषि एवं बागवानी
कृषि एवं बागवानी के क्षेत्र में बीजों की सही जाति का परीक्षण डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग के द्वारा किया जा सकता है। यह अधिक उत्तम और वांछित जातियों के विकास में सहायक सिद्ध हो सकता है। यह विधि एक ही प्रकार के नर या मादा पौधों के चयन में सहायक सिद्ध हो सकती है। जैसे अमरूदखजूर आदि, जिनमें मादा पौधे ही वांछित हैं, तथा लिंग का पता एक लंबे समय के बाद ही चलता है। ऐसे मामलों में इस विधि का प्रयोग करके समय, श्रम एवं धन की बचत की जा सकती है।
शोध एवं उद्योग
डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग विधि द्वारा कोशिका की मौलिकता प्रमाणित कर अन्यान्य शोध कार्यों में प्रयुक्त करके शोध एवं उद्योग, या उद्योग मात्र –दोनों क्षेत्रों में उन्नति की अपेक्षा की जा सकती है। जब डी एन ए के बहुत से भागों का अध्ययन एक ही साथ किया जाता है, तो वह डी एन ए फिंगर प्रिटिंग कहलाता है, तथा जब डी एन ए के एक ही भाग का परीक्षण किया जाता है, तो उसे डी एन ए टाइपिंग कहते हैं। जितने अधिक भागों को एक साथ जाँचा जाता है, फिंगर प्रिंट की विश्वसनीयता उतनी ही बढ़ जाती है।

7. DNA finger printing in India 
भारत में डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग
1988 में भारत में हैदराबाद में स्थित कोशिकीय व आण्विक जीवविज्ञान केंद्र (सी सी एम बी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ॰ लाल जी सिंह के शोध समूह ने इस विधि के लिये बी के एम (ब्रैंडेड क्रेट माइनर) नामक रोग को विकसित किया। इस प्रकार डॉ॰लाल जी सिंह के प्रयासों से आज भारत विश्व का तीसरा देश है, जहां पूर्णतया स्वदेशी डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग प्रोब को विकसित किया गया है। इस तकनीक का पूर्ण लाभ उठाने के लिए जन साधारण में यह चेतना बहुत जरूरी है। सी सी एम बी का प्रमुख लक्ष्य यही है, कि भारत में इस प्रिंटिंग तकनीक को बढ़ावा मिले, तथा इसका प्रयोग वैज्ञानिक अनुसंधानों के साथ साथ, आम आदमी की सहज पहुंच में हो और दैनिक कठिनाइयों से जूझना उसके लिए सरल हो जाए।


8. Some important facts
कुछ महत्वपूर्ण रोचक तथ्य
  1. मानव की कोशिका के डी एन ए की कुल लंबाई लगभग छः फीट होती है।
  2. आयु के साथ व्यक्ति के डी एन ए में कोई बदलाव नहीं आता है। अतः जन्म से मृत्यु पर्यंत डी एन ए एक सा ही रहता है।
  3. एक व्यक्ति के किसी भी ऊतक की किसी भी कोशिका से लिया गया डी एन ए एक ही प्रकार की डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग प्रतिचित्र प्रदर्शित करता है।
  4. सामूहिक बलात्कार की घटाना में सम्मिलित हर बलात्कारी की पहचान डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग द्वारा अलग-अलग की जा सकती है।
  5. ब्रिटेनकनाडान्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने आपने देश में प्रवेश के लिए डी एन ए फिंगर प्रिंटिंग को अनिवार्य बना दिया है।



डीएनए फिंगर प्रिंटिंग क्या होती है ? | What is DNA Fingerprinting
  • किसी भी व्यक्ति के शरीर की सभी कोशिकाएं चाहे वे रक्त की हों या त्वचा की या शुक्राणु की या बाल की सभी से एक ही प्रकार के डी एन ए  चित्र प्राप्त होते हैं, ये पट्टी चित्र ही डीएनए फिंगर प्रिंट कहलाते हैं |
  • डीएनए फिंगर प्रिंटिंग का विकास सबसे पहले 1984 में एलेक जेफ्री ने किया था |

कैसे लिया जाता है डीएनए फिंगर प्रिंट
डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए मुख्य रूप से जैविकीय नमूने की जरूरत पड़ती है जैविकीय नमूने में ख़ून के धब्बे, जड़ सहित बाल का टुकड़ा, वीर्य की कुछ बूँदें, त्वचा कोशिकाएं, मुंह में रखा कपड़ा, अस्थि मज्जा अथवा किसी ऊतक की कोशिकाएं शामिल की जा सकती हैं|
वर्तमान में इसका क्या प्रयोग किया जा रहा है ?
  • वंशानुगत बीमारियों को पहचानने में तथा उनके लिए चिकित्सा पद्यति विकसित करने के लिये |
  • बच्चे के वास्तविक माता पिता निर्धारण में
  • पैत्रक संपत्ति आदि के दावों से निपटने के लिए
  • जैविक साक्ष्यों के आधार पर अपराध अनुसंधान में तथा वास्तविक अपराधी को पहचानने में|
  • सेना आदि संगठनों में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग के रिकार्ड रखे जाते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर व्यक्तियों की पहचान की जा सके |



  • 9. MPCST in Govt. J.S.T.PG.College balaghat (M.P.)



"मध्यप्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद " द्वारा  मध्यप्रदेश की अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए जैव प्रौद्योगिकी  जागरूकता कार्यक्रम के अन्तर्गत शास.जटाशंकर त्रिवेदी स्नातकोत्तर महाविद्यालय बालाघाट,म.प्र. में  दो दिवसीय कार्यक्रम कराया गया |(18 -19 जनवरी 2018)


सेमीनार / सिम्पोसिया / वर्कषाप
पृष्ठभूमि
यह योजना प्रदेश के शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों एवं शोध छात्रों को देश विदेश के उच्च कोटि के वैज्ञानिक विशेषज्ञों से संपर्क स्थापित करने, उनकी योग्यता एवं क्षमता में वृद्धि करने एवं उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में सुद्ढ़ बनाने के उद्देश्य से आरंभ की गई हैं। परिषद् द्वारा सेमीनार, संगोष्ठी तथा कार्यशालाओं के आयोजन हेतु विभिन्न विषयों पर प्रस्ताव आमंत्रित किये जाते है।
उद्देश्य
सेमीनार, संगोष्ठी एवं वैज्ञानिक कार्यशालाओं के आयोजन से प्रदेश की वैज्ञानिक प्रतिभाओं को अपने शोध कार्य के प्रस्तुतीकरण तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिकों के साथ परिचर्चा कर वैज्ञानिक क्षमता का विकास करना इस योजना का मुख्य उद्देष्य हैं। इस वित्तीय वर्ष में लगभग 40 कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किए जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

एमपी। परिषद विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद सांसद सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1 9 73 के तहत अक्टूबर 1 9 1 9 में स्थापित की गई। परिषद की सर्वोच्च संस्था सामान्य निकाय है और मुख्यमंत्री सामान्य निकाय के अध्यक्ष हैं। विभिन्न राज्य विभाग और जल संसाधन विभाग, पीएचई, पीडब्ल्यूडी, वन, कृषि, उद्योग और तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रमुख अगर मंत्रियों और सचिवों के 61 सदस्य हैं। इसके अलावा, 4 विश्वविद्यालयों के कुल-कुलपति, विज्ञान के प्रमुख वैज्ञानिक, समाजशास्त्र और चिकित्सा विज्ञान को राष्ट्रपति द्वारा सदस्य के रूप में नामित किया जाता है। राष्ट्रीय स्तर के अनुसंधान संगठन के प्रतिनिधियों को भी नामित किया गया है। दूसरा महत्वपूर्ण निकाय कार्यकारी समिति है और अध्यक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग मंत्री हैं। समिति में 13 सदस्य होते हैं, जिसमें विधायक, शिक्षाविद, वैज्ञानिक और प्रमुख सचिव आदि शामिल हैं।



  • 10. Photography



Dr.P.K.Shrivastava(Principal,Govt. P.G.college Balaghat M.P.),
Scientist MPCST Bhopal (M. P.),
Dr.B.K.Bramhe (Asstt. Professor,Dept.of Botany ,Govt.P.G.College Balaghat M. P.),

Dr.B.K.Bramhe (Asstt. Professor,Dept.of Botany ,Govt.P.G.College Balaghat M. P.),
and 
Durgesh Khobragade, Ashish Shiv 




Mrs Dr.P.Bisen (Asstt. Professor,Dept.of Botany ,Govt.P.G.College Balaghat M. P.)

Durgesh Khobragade and Ashish Shiv 



Classmate 
Our Seniors 






  • 11. Certificate


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